हिंदी ग़ज़ल गम भरी/तुम्हे हाँ किसी से मोहब्बत कहाँ है.....

हिंदी ग़ज़ल  गम भरी/तुम्हे हाँ किसी से मोहब्बत कहाँ है.....

हिंदी ग़ज़ल  गम भरी/तुम्हे हाँ किसी से मोहब्बत कहाँ है.....
हिंदी ग़ज़ल  गम भरी/तुम्हे हाँ किसी से मोहब्बत कहाँ है.....


  आपको जानकर ताज़्ज़ुब होगा की निज़ाम रामपुरी (जो रामपुर के नवाब भी थें ) " जनाब मिर्ज़ा गिलिब'' के शागिर्द थें , इन्होने भी एक से बढ़कर एक गज़लें कही है , आप खुद ही देख लीजिये , पेश है उनकी एक ग़ज़ल :- 

                        हिंदी ग़ज़ल  गम भरी

तुम्हे हाँ किसी से मोहब्बत कहाँ है, 
ज़रा देखिये तो वो सूरत कहाँ है||

भला अब किसी से सुनो बात क्या तुम, 
तुम्हे अपनी बातों से फ़ुर्सत कहाँ है||

हर इक बात पर रोये से देते हो अब, 
वो शोख़ी कहाँ वो शरारत कहाँ है||

पड़े रहते हो पहरों ही मुँह लपेटे, 
वो जलसा कहाँ है वो सोहबत कहाँ है||

कोई कुछ कहे अब तुम्हे कुछ न बोलो, 
वो तेज़ी कहाँ वो ज़राफ़त कहाँ है||

वो लग चलना हर इक से आफ़त तुम्हारे, 
वो तुन्दी वो शोख़ी वो फ़रहत कहाँ है||

कोई जनता भी नहीं अब तो तुम को, 
वो पहली सी ख़ुश्बू में  शोहरत कहाँ है||

तुम्ही देखो और ग़ैरकी बातें सुनना, 
वो शान अब कहाँ है वो शौकत कहाँ है||

तुम्हे हो अदु ही का मिलना मुबारक, 
अदु की सी हम में लियाक़त कहाँ है||

'निज़ाम' आप ही आप आएगा याँ पर, 
यहाँ रश्क सहने की ताकत कहाँ है||

      #जनाब निज़ाम रामपुरी
      

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ