मोहब्बत ग़ज़ल हिंदी Lyrics, /इक मोहब्बत के एवज़ अर्ज़ ओ समा दे दूँगा:-
मोहब्बत ग़ज़ल हिंदी Lyrics, /इक मोहब्बत के एवज़ अर्ज़ ओ समा दे दूँगा :-
आज फिर से आपके ख़िदमत में एक मशहुर शायर अहमद नदीम क़ासमी का एक ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ.....
मोहब्बत ग़ज़ल हिंदी Lyrics
इक मोहब्बत के एवज़ अर्ज़ ओ समा दे दूँगा,
तुझ से काफ़िर को तो मैं अपना ख़ुदा दे दूँगा||
जुस्तुजू भी मिरा फ़न है मिरे बिछड़े हुए दोस्त,
जो भी दर बंद मिला उस पे सदा दे दूँगा||
इक पल भी तिरे पहलू में जो मिल जाए तो मैं,
अपने अश्कों से उसे आब-ए-बक़ा दे दूँगा||
रुख़ बदल दूँगा सबा का तिरे कूचे की तरफ़,
और तूफ़ान को अपना ही पता दे दूँगा||
जब भी आएँ मिरे हाथों में रुतों की बागें,
बर्फ़ को धूप तो सहरा को घटा दे दूँगा||
तू करम कर नहीं सकता तो सितम तोड़ के देख,
मैं तिरे ज़ुल्म को भी हुस्न-ए-अदा दूँगा||
ख़त्म गर हो न सकी उज़्र-तराशी तेरा,
इक सदी तक तुझे जीने की दुआ दे दूँगा||
#अहमद नदीम क़ासमी
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