वसीम बरेलवी कि ghazals in Hindi Lyrics /लहू न हो तो क़लम तरजुमाँ नहीं होता

वसीम बरेलवी कि ghazals in Hindi Lyrics /लहू न हो तो क़लम तरजुमाँ नहीं होता

वसीम बरेलवी कि ghazals in Hindi Lyrics /लहू न हो तो क़लम तरजुमाँ नहीं होता
वसीम बरेलवी कि ghazals in Hindi Lyrics /लहू न हो तो क़लम तरजुमाँ नहीं होता

     वसीम बरेलवी ghazals Lyrics in Hindi 



लहू न हो तो क़लम तरजुमाँ नहीं होता, 
हमारे दौर में आँसू   ज़ुबाँ नहीं   होता||

जहाँ  रहेगा  वहीं  रौशनी    लुटायेगा, 
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता||

मैं उसको भूल गया हूँ ये कौन मानेगा, 
किसी चराग़ के बस में धुआँ नहीं होता||
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जनाब वसीम बरेलवी साहेब  का लहजा ही अलग  है | ग़ज़ल , गीत  और दोहों से  हिन्दी-उर्दू के सभी काव्यपे्रमी  मंत्रमुग्ध कर दिया |  बरेलवी ने हिन्दोस्तान की मिट्टी को मोहब्बत करने वाला बताते हुए कहा कि ये कवि सम्मेलन और मुशायरे जैसी गंगा-जमुनी गतिविधियां ही आपसी भाई-चारे को निभाने की प्रेरणा देती हैं | इन महान शायरों   से हमें भी  यही  प्रेरणा लेनी  चिहिए जो मोहब्बत को ही सबसे बड़ा मज़हब और इबादत मानते हैं | पेश  करता हूँ .उनकी एक ग़ज़ल :-

"ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है, 
समन्दरों ही के लहजे में बात करता है||

ख़ुली छतों के दिये कब के बुझ गये होते, 
कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है||

शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं, 
किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है||

ज़मीं की कैसी विक़ालत हो फिर नहीं चलती, 
जब आसमां  से  कोई  फ़ैसला उतरता है||

तुम आ गये हो तो फिर चाँदनी सी बातें हों, 
ज़मीं पे चाँद  कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है||

    #जनाब वसीम बरेलवी


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